तड़प रही है सांसे,,,
तूझे महसूस करने को,,,
फिजा में खुशबू बनकर,,,
बिखर जाओ तो कुछ बात बने
मानना ही पड़ा….
इश्क हो गया है मुझे…..
लोगों ने बहुत बार देख लिया
बेवक्त….. बेवजह…. मुस्कुराते हुए मुझे..
कब से लिखे जा रहे हो मेरी नथली के एक मोती पर....
आँखों पर भी लिखना है
होंठ भी तो बाक़ी हैं..
शिफा देता था कभी जिसका मरहमी लहजा,
वहीं मसीहा मुझे बीमार करके छोड़ गया....
आंखों में बसा रखा है उन्हे,
जिनका नाम तक लकीरों में नहीं!
हां मैंने महसूस किया था जीते जी मर जाना,
जब उसने कहा था कि अब हम नहीं मिलेंगे।
पाकीज़गी यहां किसको रास आती है ज़नाब!!
सब के सब ज़िस्म के कीचड़ में इश्क़ ढूंढ़ते हैं!!
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