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तलब अपनी बढ़ाओ पहले फिर हम से प्यार करना, इश्क जब ना संभले तुमसे तब ही हम से इजहार करना..!

 



तलब अपनी बढ़ाओ पहले फिर हम से प्यार करना,
इश्क जब ना संभले तुमसे तब ही हम से इजहार करना..!




दिल ये कहता है हार कर देखें..!!
ख़ुद को तुझ में उतार कर देखें....!!!!




हुस्न पावों में है या 
पाजेब में...? 
इस तस्व़ीर ने 
कितना मुश्किल सवाल 
पूछा है






तुम्हें देखकर यक़ीं होता है हर बार,
जैसे मेरे ख़्वाब चुरा कर बनाया गया तुम्हें....!!!




ले जाओ मुझको मुझसे मगर एक बात है,
लम्बे सफ़र के वास्ते अच्छा नहीं हूं मैं।






सब एक मशवरा तो दो..
एहतियात से इश्क़ करूं
या इश्क़ से एहतियात??






जीने के लिए नहीं चाहा है तुम्हें,
तुम्हें चाहने के लिए जीते हैं हम।।






कितना सुकूँन है तुझे चाहने में,
और तुझसे 'कुछ ना 'चाहने में.....






जब ख्याल आया तो ख्याल भी 
         उनका आया।।
जब आँखे बंद की ख्वाब भी 
           उनका आया।।
सोचा याद कर लूँ किसी और 
              को....
मगर होठ खुले तो नाम भी 
        उनका आया ।।।🥰









अंतर समझ लो मोहतरमा..
आप महंगी हो और हम कीमती।






आफ़त है उनसे मिलना सावन के महीने में.. 
ख़ुद संभले, दिल को संभाले या छतरी को...







कल एक उम्र तेरे बिना गुजारनी है मुझे,
आज एक लम्हा भी तेरे बगैर गुजरता नहीं!







लबो से चाहत की खुशबू चुराने दो,
बहुत हो गया सितम,अब तो पास आने दो
ना करना जुबां से इज़हार मोहब्बत का…बस इशारो से ही राज़-ए-दिल की बात बताने दो।








मेरे होंठों पे लिखा सब्र बता रहा है,

मैंने दरिया की कोई शर्त नहीं मानी है।।













पढ़ने वालों को कैसे बताया जाए,

कि लिखने वालों पर क्या गुज़री है।












हम एक बार नही बार-बार मारे गए,

हमे जुनून चढ़ा था किसी पे मरने का..!!















उसके बदलने से मेरे संभलने तक का ये सफर,

मुझे बेहतर से बेहतरीन कर गया !!













सुबह-सुबह आपकी यादों का साथ हो,
मीठी-मीठी परिंदों की आवाज़ हो,

आपके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट हो,
और हमारी ज़िन्दगी में सिर्फ आपका साथ हो।🌹


















तेरे इश्क़ में बंध गए है 
हम कुछ इस तरह 
सिर्फ तुम्हे ही चाहना 
तुम्हे ही चाहते रहना है 
उम्र भर....








मुझे अब वो बुरी लगने लगी है,
मेरे अंदर का फिदा मर गया है क्या!🤔








अल्फ़ाज़ दर अल्फ़ाज़ मै तुमको ही लिखता हूं,
अहसास बनकर तुम मेरी नग्मों मे शामिल हो।।














मेरी कलम से निकले मेरे जज्बातों को जब भी वो पढता है...
चौंक कर कह उठता है "अरे ! ये हाल -ए- बयां तो मेरा है"...












जो दिल में उतर गया बस वही सच है...
बाक़ी सब तो बस कश्मकश है....










अब उसने वक्त निकाला है हाल सुनने को,

बयान करने को जब कोई दासतान भी नहीं।







हमारी वफाओं की 'कीमत लगाई जा रही है,
कुछ यूं हमारी मुहब्बत आज़माई  जा रही है.

उनका'बहाना कि रेनोवेशन है हमारे घर का,
बाद में फिर "वही" खिड़की हटाई जा रही है.

उसूल -ए- मुहब्बत' अभी भी बदला नहीं है,
पर'कागजों'में'तस्वीर'उम्दा'दिखाई'जा'रही'है.

ये'तजुरबा मिला है खुद को खुद में खोने से,
बिन'मुहब्बत'जिंदगी'बस'निभायी जा'रही'है.

ना जाने ऐसे कौन से सदमे जी रही हो तुम, 
यहां रो रोकर के मेरी सारी तराई जा रही है.

बेताब'तूफानों की हवा उस बाम'ओ'दर को,
खुशियों'के'आलम'कि'हंसी'उड़ाई'जा'रही'है.

अब तो इस ज़मीं के होंठ तक फटने लगे हैं,
न जाने क्यों बिन बरसे ये जुलाई जा रही है.

तुम पर उधारी इश्क़ की जो भी है "शिवांश"
वो आब-ए-चश्म बहाकर  चुकाई जा रही है


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